सनातन धर्म में दान के अनेक महत्व बताए गए है
आइये जानते है कलियुग में दान के महत्व
दान का अर्थ :- सत्पात्र (श्रेष्ठ और योग्य व्यक्ति) श्रृद्धापूर्वक किये गए अर्थ (भोग्य या वस्तु) का प्रतिपादन दान कहलाता है |
इस लोक में यह दान भोग तथा परलोक में मोक्ष प्रदान करनेवाला है |
मनुष्य को चाहिए की वह न्यायपूर्वक अर्थका उपार्जन करे, क्योंकि न्यायपूर्वक उपार्जित अर्थका ही दान भोग सफल होता है |
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आइये जानते है गरुड़-पुराण में किस दान से क्या फल प्राप्ति का विवरण है
जलदान — तृप्ति
अन्न दान — अक्षय सुख
भूमिदान — समस्त अभिलषितः पदार्थ
दीपदान — उत्तमनेत्र
सुवर्णदान — दीर्घ आयु:
गृहदान — उत्तम भवन
रजतदान — उत्तम रूप की प्राप्ति
वस्त्रदान — चन्द्रलोक की प्राप्ति
अश्वदान — अश्विनी कुमार के लोक की प्राप्ति
वृषभका दान — विपुल सम्पति
गौ दान — सूर्यलोक की प्राप्ति
तिलदान — संतान
भयभीत को अभय प्रदान करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है,
धन्या: दान से अनन्त अविनाशी सुख,
वेद ध्यान पन्नन से ब्रम्हा का सानिध्य लाभ है |
गाय को घास देने से पापो से मुक्ति,
जो मानुष्य परलोक में अक्षय सुख की अभिलाषा रखता है | उसे अपने लिए संसार या घर में जो वस्तु प्रिय है | उस वस्तु का दान सर्वाधिक ब्राह्मण को करना चाहिए |
दान धर्म से बढ़कर संसार में कोई या धर्म नहीं है |
गो, ब्राह्मण, अग्नि तथा देवो को दिए जाने वाले दान से जो व्यक्ति मोहवश दुसरो को रोकता है वह पक्षी की योनि को प्राप्त करता है |
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